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रविवार, 11 सितंबर 2016

जुदा होकर न जुदा हो सके।

कैसे कहु

-अमित चन्द्रवँशी"सुपा"

कैसे कहु
ये दफा है सजा नही
मेरे कदम डगमगाने को हैं
मुझे परवाह नही हैं
कैसे बंया करु
मेरा दिल माना नही....

      मर के भी तुम से जुदा
      न हो सका
      तेरे बिन रहके मरता गया
      पल पल ये दिल पागल हुआ
      तेरे साथ गुजरे पल याद
      आता रहा....

कहु मैं कैसे
तेरा दिल मुझसे रूह गया
तुम एक दफा आकर
मेरा सीना पिघला दिया
पत्थर स होने चला था
उसे तुने क्यों चोट दिया...
चोट दिया

      सपनो में दिख रही हो
      चाँद स माना तुझे है
      ये मेरा दिल
      तुम पे बेकाबू हैं
      हरगिज नही तोड़ूँगा
      ये दिल आज भी  जिन्दा हैं....

-अमित चन्द्रवंशी"सुपा"

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