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बुधवार, 22 जून 2016

दो वक्त की रोटी

दो वक्त की रोटी
                      -अमित चन्द्रवंशी"सुपा"

कैसे कहु कैसे बंय करू
मेरे दिल की दर्द की तनहाई को
कैसे कहु दू मेरे दिल के अरमान को
रुक गये मेरे धड़कन
उन नदानों को सड़क पर चलते देख
कैसे कह दू दुनिया में गरीबी नही हैं
उन नदानों को देख
जिन्हें स्कूल जाना चाहिए
वह सड़क पर भीख माँग रहे हैं
उन्हें कहा पता था
हम क्या कर रहे हैं
उन्हें तो समाज ने बिगड़ दिया
चन्द पैसे देखकर उनको खरीद लिए
उन गरीब को पता कहा था
हमारा काबिल क्या हैं?
उन्होंने तो दो वक्त की रोटी के लिए किया
दर्द भरी निग़ाहों में जान तो थी
लेकिन क्या करे उनके पास काम नही थे
नन्हे पैरों में चप्पल भी नही थे
सब के पास जाते हैं नंगे पैर
कोई तो भीख देदे
उन्हें कहा पता था
हम अभी स्कूल जाने लायक हैं
वक्त की शिकंज पड़ी थी
मजदुर बने वे लोग गरीबी में पड़े थे।
    
                        -अमित चन्द्रवंशी"सुपा"

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