नादान थे समझ से परे थे,
आज वक़्त भी है समझ भी
अपनी समस्या में उलझे है,
हम तो दुनिया से बड़ बोले हैं।
हमारी गति सभी से भिन्न है,
हमारी सपना दुनिया से भिन्न हैं
अपनी जश्न और पर्व भिन्न परे हैं,
आज सभी भिन्नता से भरे पड़े हैं।
सारी दुनिया रंग से भर पड़े हैं,
वादी में शहर जनों से भरे पड़े हैं
रिश्ते मंजिल के छोर पर रुके हैं,
सब फेसबुक में लाइक पर पड़े हैं।
हास्य रस मन का सब में भर पड़े हैं,
सभी लोग मंजिल के तारे गिन रहे है
सभी के रास्ते भिन्न भिन्न चल पड़े,
हम तो दुनिया से अलग होते चले हैं।
सारी दुनिया नजर घुमाकर देख रहा हैं,
दुनिया से हमारा भारत कितना विचित्र हो रहा हैं।
-अमित चन्द्रवंशी