एक बार फिर से आजाद भारत चाहता हु...
जकड़ लिए है उद्योगों ने जिस जगह को
फिर से वह जगह आजाद चाहता हु मैं
खेत अब दिख नही रहा अन्नदाता का
चारो ओर बड़े बड़े बिल्डिंग नजर आते है
एक बार फिर से आजाद भारत चाहता हु...
अन्न कहाँ उपजाए अब दिख नही रहा है?
कोई तो शांति लाये भूमि फिर से दिलाये
शांति के लिए एक काफिला चाहता हु
सोने की चिड़िया का वही बसेरा चाहता हु
भारत की माटी की चमक फिर से चाहता हु...
लहलहाती हुई भूमि की सुगंध नही आ रही है
मसीहा चाहिए जो अन्नदाता के साथ खड़ा रहे
आप सबसे अन्नदाता की खुशहाली मांगता हु
कर्जदार अन्नदाता का कर्ज माफ चाहता हु
एक बार फिर से अन्नदाता का खुशी चाहता हु...
एक बार हल उठा लिए तो भूखे मर जाओगे
उद्योगों के साथ खड़ा होने वाले हाल देख लेना
आजाद नही हुआ तो फिर से भूखे मर जायेंगे
वही हाल होगा जैसे पहले कभी हुआ था
अन्नदाताओं का भूमि मैं आजाद मांगता हु...
जब हमारा देश गुलाम था बर्बरता आई थी
खाने को लाले पड़े थे अमेरिका से लाये थे
जिसे मवेशियों को खिलाया जाता था
उसे भारत के लोगो को खाने की मजबूरी थी
एक बार हम फिर वह भारत नही देखना चाहते है..
फिर से आजाद भारत प्यार वाला चाहता हु...
-अमित चन्द्रवंशी "सुपा"
उम्र-18वर्ष 'विद्यार्थी'
रामनगर, कवर्धा, छत्तीसगढ़